बिहार की राजनीति एक बार फिर से गर्म हो गई है। 2025 विधानसभा चुनावों से पहले, घटनाएं इतनी तेजी से बदल रही हैं कि नए बयान और नए बहस हर दिन सामने आ रही हैं। जान सूरज अभियान के संस्थापक, नेतृत्व और चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर (पीके) ने एनडीए नेताओं पर एक डरावना हमला शुरू किया है। उसी समय, विपक्षी शिविर के नेता तेजशवी यादव भी अमित शाह और नीतीश कुमार की बैठक के बारे में चर्चा कर रहे हैं।
एनडीए पर पीके का सीधा हमला
प्रशांत किशोर ने खुलकर कहा कि बिहार की राजनीति में, एनडीए नेताओं ने बार -बार जनता का विश्वास तोड़ दिया है। उनका आरोप है कि सत्ता की कुर्सी को बचाने के लिए, गठबंधन को बार -बार बदलना और जनता के लिए किए गए वादों को भूल जाना, यह एनडीए की वास्तविक राजनीति है।
नीतीश कुमार की भूमिका पर सवाल
पीके ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार में भी खुदाई की। उन्होंने कहा कि जो नेता बार -बार अपनी राजनीतिक दिशा बदल देता है, वह उस पर जनता का विश्वास नहीं रख सकता है। पीके ने अपनी विश्वसनीयता को एक बार फिर से चोट पहुंचाई, जिससे नीतीश के पुराने टैग को ‘पलाटू राम’ के साथ उछाल दिया गया।
अमित शाह-नातिश बैठक में वृद्धि हुई
हाल ही में, गृह मंत्री अमित शाह और नीतीश कुमार की बैठक ने बिहार की राजनीति में एक नई हलचल मचाई है। इस बैठक के बारे में विभिन्न अटकलें लगाई जा रही हैं। क्या यह एनडीए में नई ताकत का संकेत है या चुनावी रणनीति का सिर्फ एक हिस्सा है?
तेजशवी यादव का प्रतिशोध
तेजशवी यादव ने इस बैठक के बारे में कहा कि भाजपा और जदू का गठबंधन सिर्फ सत्ता की राजनीति है, इसमें लोगों के लिए कोई अच्छा नहीं है। उन्होंने दावा किया कि बिहार के लोगों ने अब इस राजनीतिक नाटक को अच्छी तरह से समझा है।
जनता के बीच संदेश की लड़ाई
इस समय बिहार में नेताओं के बीच न केवल युद्ध है, बल्कि जनता को सही संदेश भेजने के लिए एक प्रतियोगिता भी है। पीके लगातार अपने अभियान के माध्यम से एक संदेश भेजने की कोशिश कर रहा है कि वर्तमान गठबंधनों के कारण जनता को अच्छा नहीं मिल रहा है।
2025 चुनाव समीकरण प्रभाव
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह के बयान और बैठकें सीधे 2025 विधानसभा चुनावों को प्रभावित करेंगे। एनडीए अपनी पकड़ को मजबूत करने की कोशिश कर रहा है, जबकि विपक्ष इस गठबंधन को अविश्वसनीय साबित करने की कोशिश कर रहा है
पीके के जन सूरज अभियान
प्रशांत किशोर लगातार अपने जान सूरज अभियान के तहत जनता के साथ सीधे संवाद कर रहे हैं। उनका उद्देश्य बिहार की जमीनी समस्याओं को उजागर करना है और लोगों को यह एहसास कराना है कि पारंपरिक पार्टियों से समाधान की उम्मीद करना बेकार है।
तेजस्वी
उसी समय, तेजशवी यादव केंद्र में बेरोजगारी और विकास के मुद्दे को रखकर अपनी रणनीति बना रहे हैं। उनका दावा है कि अगर उनकी पार्टी सत्ता में आती है, तो युवाओं को रोजगार मिलेगा और बिहार को एक नया विकास मॉडल मिलेगा।
गठबंधन राजनीति खेल
बिहार में गठबंधन की राजनीति हमेशा महत्वपूर्ण रही है। नीतीश कुमार के बार-बार परिवर्तन और भाजपा-आरजेडी के साथ संबंधों के उतार-चढ़ाव यह साबित करते हैं कि बिहार में सत्ता की कुर्सी समीकरणों द्वारा कैसे निर्धारित की जाती है न कि लोगों की बुनियादी जरूरतों से।
आगामी चुनाव का माहौल
इन सभी आरोपों और काउंटर-एलेगेशन ने यह स्पष्ट कर दिया है कि बिहार में 2025 के चुनाव बहुत दिलचस्प होने वाले हैं। एक ओर, एनडीए अपनी ताकत दिखाने में व्यस्त है, दूसरी ओर विपक्ष और पीके जनता के विश्वास को जीतने की कोशिश कर रहे हैं। आने वाले महीनों में, यह देखना दिलचस्प होगा कि जनता का क्या भरोसा है।
निष्कर्ष
बिहार की राजनीति में माहौल इस समय बहुत गर्म है। जबकि प्रशांत किशोर ने एनडीए और नीतीश कुमार को गोदी में डाल दिया है, तेजशवी यादव ने भी अमित शाह-नातिश को एक मुद्दे से मिलने के लिए अपने राजनीतिक मैदान को मजबूत करने की कोशिश की है। कुल मिलाकर, नेताओं के बयान और बैठकें बिहार चुनाव 2025 से पहले जनता के बीच चर्चा का सबसे बड़ा विषय बन गए हैं।